हम है देहाती तराईबासी

कुनै बहादुरी कामको लागि मानिसको हृदय आतुर हुन थालेपछि त्यसको लागि उसले अवसर पनि खोज्दछ । जीवनमा यस्ता अवसरहरुको कुनै कमी छैन र यदि कसैलाई यस्तो अवशर प्राप्त भएन भने ऊ कामचोर छ वा डरपोक छ वा जीवनलाई बुझेको रहेनछ भनेर सम्झनु पर्छ”(बूढी इजरगिल,मक्सिम गोर्कीको कथा ‘बूढी इजरगिल’ को मुख्य पात्र) ।
आगे आगे वैला चले पिछे से किसनवा रे भैया, पिछे से किसनवा
गाउँ मे बाबु जी येहेन गाना गाके भिन्सर मे खेत जाके अकेले जोतैछे , तो भी दो बिघा बाझँ रह्गेले । कोहि काम करेवाला लडका नही छे । बगैंचा मे लताम, कटहल, नारिवल पक रहल छे । आम के फूल मे मधु पकड गेले । दवा छिटे वाला कोहि नही छे । गेँहू मे खाध कम् भ्यागेले । फिरते फिरते ५ दिन मे मुस्किल से ! वोरा युरिया ।गाय के बाछी भू भूरे भूरे वालवालानिकलके–बढ नीमन हेते,लगैछे रामलल्ला खुस भेले । तोरा माई के भुखार जचवाने कोशी अञ्चल प्रदेश हस्पताल मे गेले तो हस्पताल वाले कहल्के ‘ प्राइभेट हस्पताल ले जाऊ । अपना सरकारी हस्पतालके हालत चौपट भ्या गेले रे !
प्रधानमन्त्री पूर्वाञ्चल वो क्या बडका बिधालयसे आब डाक्टरी पढनी खुला केले,पटना के साहू जी तोरा ससुरालसे कहलके की अब ुअब कोटा हि खरीद लेवे प्रचण्डको खुश करेवाले जोगार हमरा मालूम छेु । सरकारी हस्पतालके हालात निमन नही छे परधान कहै छे ३०० पटरीवाले अस्पताल ओकरा दामाद के खातिर मे दे रहल छे । कथि करै छे हमारा प्रधान प्रचण्ड अब पूरा बिहार से बीमार के दलाल आओईछे । मधुवनी से एक महाजन आके हमरा पूरै खेत उठाके खरीद करे वाली बात कहलके तो हमरा गुस्सा आगेले हे ! अहाँ ओताके आदमी केहन लेवे यताके खेतबाडी हम कहल के तो कुर्था से धडाक से नागरिकता दिखाके कहल रहल छे की ये हमारा देश नेपालकी सरकार तो बनाओईछे ये नागरिकता तो कौन तलाव की मछली छे रे ।
यतना बरश भेले गाउँमे कोनो दुशरा धरमके बात नही सुनल के,आजकल रे बबुवा चन्दर करेलाके केहेन केहेन की मूर्ति बनाके अब नयाँ धरम की बात कहके गाउँमे मिटिङ्ग रखै छे रे !
और बबुवा तू हमर कहै छि की बाबूजी हम नेपाल की एक इन्च जमीन भी बिदेशीके हड्पने नहीँ देवे(लाठी भला सब उठाके खदेडवे,हे गे बबुवा,तू केकरा सबके खदेडवे रे,पहले तो उपर से सुरू करे परते रे ! तोहर दिदि रेवतिया के घरवाले आरब गेले, गाउँवाले कहरहल छे कि ओकर काम निमन नही छे ।
केकरा कहवे ? हे बौवा ! सडल आँटा के बसीया पाउरोटी खाके तू कथिला काठमाडौँ मे शहरिया बन रहल छे ? जल्दी आऊ अपन गाउँ !
(बिम्ब श्रेय ः लेखक के अपन । बाँकी द चीभ और अपना भोजपुरी संस्कृति(मार्फत गूगल इन्टरनेट २८ अप्रिल ई.सं.२०२४ ।
“कुनै बहादुरी कामको लागि मानिशको हृदय आतुर हुन थालेपछि त्यसको लागि उसले अवसर पनि खोज्दछ । जीवनमा यस्ता अवसरहरुको कुनै कमी छैन र यदि कसैलाई यस्तो अवशर प्राप्त भएन भने ऊ कामचोर छ वा डरपोक छ वा जीवनलाई बुझेको रहेनछ भनेर सम्झनु पर्छ”(बूढी इजरगिल,मक्सिम गोर्कीको कथा ‘बूढी इजरगिल’ को मुख्य पात्र) ।
“आगे आगे वैला चले पिछे से किसनवा रे भैया, पिछे से किसनवा“
गाउँ मे बाबु जी येहेन गाना गाके भिन्सर मे खेत जाके अकेले जोतैछे ; तो भी दो बिघा बाझँ रह्गेले । कोहि काम करेवाला लडका नही छे । बगैंचा मे लताम, कटहल, नारिवल पक रहल छे । आम के फूल मे मधु पकड गेले । दवा छिटे वाला कोहि नही छे । गेँहू मे खाध कम् भ्यागेले । फिरते फिरते ५ दिन मे मुस्किल से ! वोरा युरिया ।
गाय के बाछी भू भूरे भूरे वालवालानिकलके–बढ नीमन हेते,लगैछे रामलल्ला खुस भेले ।

तोरा माई के भुखार जचवाने कोशी अञ्चल–प्रदेश हस्पताल मे गेले तो हस्पताल वाले कहल्के ‘ प्राइभेट हस्पताल ले जाऊ ।’ अपना सरकारी हस्पतालके हालत चौपट भ्या गेले रे ! परधान मन्त्री पूर्वाञ्चल वो क्या बडका बिधालयसे आब डाक्टरी पढनी खुला केले,पटना के साहू जी तोरा ससुरालसे कहलके की अब ’अब कोटा हि खरीद लेवे प्रचण्डको खुश करेवाले जोगार हमरा मालूम छे’ । सरकारी हस्पतालके हालात निमन नही छे परधान कहै छे ३०० पटरीवाले अस्पताल ओकरा दामाद के खातिर मे दे रहल छे । कथि करै छे हमारा प्रधान प्रचण्ड अब पूरा बिहार से बीमार के दलाल आओईछे
मधुवनी से एक महाजन आके हमरा पूरै खेत उठाके खरीद करे वाली बात कहलके तो हमरा गुस्सा आगेले हे !

अहाँ ओताके आदमी केहन लेवे यताके खेतबाडी हम कहल के तो कुर्था से धडाक से नागरिकता दिखाके कहल रहल छे की ये हमारा देश नेपालकी सरकार तो बनाओईछे ये नागरिकता तो कौन तलाव की मछली छे रे ।
यतना बरश भेले गाउँमे कोनो दुशरा धरमके बात नही सुनल के,आजकल रे बबुवा चन्दर करेलाके केहेन केहेन की मूर्ति बनाके अब नयाँ धरम की बात कहके गाउँमे मिटिङ्ग रखै छे रे ! और बबुवा तू हमर कहै छि की बाबूजी हम नेपाल की एक इन्च जमीन भी बिदेशीके हड्पने नहीँ देवे–लाठी भला सब उठाके खदेडवे,हे गे बबुवा,तू केकरा सबके खदेडवे रे,पहले तो उपर से सुरू करे परते रे !

तोहर दिदि ’ रेवतिया ’ के घरवाले आरब गेले, गाउँवाले कहरहल छे कि ओकर काम निमन नही छे । केकरा कहवे ? हे बौवा ! सडल आँटा के बसीया पाउरोटी खाके तू कथिला काठमाडौँ मे शहरिया बन रहल छे ? जल्दी आऊ अपन गाउँ !
( बिम्ब श्रेय ः लेखक के अपन । बाँकी द चिभ और अपना भोजपुरी संस्कृति–मार्फत गूगल इन्टरनेट २८ अप्रिल ई.सं.२०२४)

सेयर गर्नुहोस्

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *